By Manish Aggarwal
Contributing Author for Spark Igniting Minds
आंसू से बोली मुस्कान
संभल जरा, तेरा कहाँ है ध्यान!
आंसू बोले तेरी शान निराली
मुख पर रहती तू बाहरवाली!
तू बाहर-बाहर डोल रही है!
मन के हिचकोले नहीं तोल रही है!
मैं तुम्हें बताने आया बस
अन्तर हो रहा बेबस!
मैं - मेरे में द्वन्द्व हो रहा
वजूद की खातिर, वजूद खो रहा!
भिक्षुक सा जीवन हो रहा सारा
भ्रम और भय का हरदम मारा!
सच को जाने, सच को माने
फिर भी सच को ही न पहिचाने!
मुस्कान कहे नादान नहीं मैं
तेरे जैसी महमान नहीं मैं!
अन्तर की व्यथा जान रही हूँ
बाहर को भी संभाल रही हूँ!
हम जीवन की पहचान मतवाले
तुम नयनों में मेरे रखवाले!
जब-जब मानुष पत्थर होता
हम करूणा-मानवता बन जाते
हृदय अन्तर-बाहर को महकाते
उत्साह, सबल, आनंद कहलाते!
About the Author Manish Kumar Aggarwal, The Mindfood Chef, is a life coach and an author, He encourages and guides people towards realizing awareness via inner communication. He spreads the message of feeling gratitude, joy, and abundance.
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