By Aparna Bandyopadhyay
Contributory Author for Spark Igniting Minds
एक मैं हूं जो दुनिया को दिखे,
और एक मैं हूं, जो सिर्फ मुझे दिखे।
मैं जब ब्रम्हांड का सैर करूं,
मुझे दिखे शंभूजी के डमरू।
जो मैं बाहर करूं चलाचल,
लहराए क्लेश, इर्षा, द्वंद की आंचल।
एक मैं हूं जो प्रेम की भावना दे बिखरे,
और एक मैं हूं जो संपत्ति परिजनों से बटोरे।
एक मैं हूं जो बादलों में पंछी के संग उड़े,
और एक मैं हूं जो खींचे धर्म जाति के लकीरें।
एक मैं हूं जो सूर्य की किरण बनकर पृथ्वी सौहार्द करे,
और एक मैं हूं जो प्रलय बनकर धरा को नष्ट करे।
मैं विलीन हो जाऊं मैं में , प्रभु से अर्चन करूं,
प्रेम भावना को अपनाकर, द्वंद क्लेश का अंत करूं।
अनादि से अनंत की दौड़ ,आत्मा करे सवार,
पाप की कब्र खोद, पुण्यता की करे विचार।
एक मैं हूं जो दुनिया को दिखे,
और एक मैं हूं, जो सिर्फ मुझे दिखे।
About the Author
Aparna has been a physics teacher in various Air Force Stations and Private schools in civilian areas, whenever stationed at a place. She has written articles and poems in Air Force magazines and regional publications.
She is now focusing on methods to make the environment green and safe. Her motto is to keep learning from young and old alike, there being no end date to learning.
Comments