By Dr. Farah Deeba
Contributing Author for Spark Igniting Minds
आज उन्होंने मुझे काफ़िर कहा,
अंदाज़ उनका ऐसा की मै हैरत में हूं,
मेरे सजदे की कीमत तो मैंने मांगी नहीं ।
जितने सजदे किए वह भी कहां गिने तुमने,
की आज कुफ्र में मुझको गिना के छोड़ दिया ।
कल तक जो हम ख़ुदा हुआ करते थे,
सजदे इबादत के फ़रिश्ते करते थे ।
अब तुम कहते जो की मै काफ़िर तो हूं,
अपनी इबादत की रातों का मुझे हिसाब करो,
कि जन्नत तुम्हारी तुम अपने पास ही रखो ।
हमें तो अब भी अपने खुदाया का है इंतजार,
जो मुझे काफ़िर बना के भी मोमिन में करे शुमार,
हमारा सर तो सजदे मै ही होगा बार बार
ऐसा ख़ुदा मिले तो कौन बनेगा काफ़िर ए यार ।
(Featured Image by Stefan Keller from Pixabay)
About the Author
Dr. Farah Deeba is a runner, motivator and counsellor, trainer and educationist, proficiency in management and administration.
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