By Manish Aggarwal
Contributing Author for Spark Igniting Minds
संतन का सनातन, सनातन के संत!
हृदय न कोई आदि, न कोई अंत!!
पंचतत्व त्रिगुण की काया!
निर्गुण-सगुण सब उसकी माया!!
सिमटे - फैले तब होए अनंत!
हृदय न कोई आदि, न कोई अंत!!
कर्म बीज, प्रारब्ध वृक्ष है!
बढता-घटता जग चंद्र पक्ष है!!
जीवन-मृत्यु यूँ रहें जीवंत!
हृदय न कोई आदि, न कोई अंत!!
मन में कल्पित, कल्पित में मन है!
कण-कण में जीवन,जीवन कण-कण है!!
निमिष-निमिष में बनती बिगड़ती, सृष्टि सारी चक्षुपर्यंत!
हृदय न कोई आदि, न कोई अंत!!
(Featured Image by Nat Aggiato from Pixabay)
About the Author
Manish Kumar Aggarwal, The Mindfood Chef, is a life coach and an author, He encourages and guides people towards realizing awareness via inner communication. He spreads the message of feeling gratitude, joy, and abundance.
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